Thursday, December 3, 2020

My Humble Request to My Respected Prime Minister

माननीय प्रधानमंत्री जी आपका कृषि कानून 2020 ठीक तो है, पर हमारे देश के लिए नहीं, बल्कि विदेशी किसानों के लिए जो मजबूत किसान है। हमारे देश के किसान मजबूत नहीं मजबूर हैं, खेत से फसल काटते ही उन्हें इस बात की फिक्र होती है कि कैसे इसे बेचकर हटाए, अगर इसे बेचकर नहीं हटाएंगे तो इसका भंडारण हम कहां करेंगे, अगर भंडारण नहीं करेंगे,यह अनाज बहुत जल्द खराब हो जाएंगे। इस कारण हमारे देश के किसान मजबूरी में अपनी फसल को जितना जल्दी हो सके बेचकर हटाना चाहता है। क्योंकि उनके पास ना ही अच्छा भंडारण की सुविधा है और जल्द से जल्द फसल बेचकर कर्ज भी लौटाने होते हैं। इसलिए हमारे देश के किसान मजबूरी में अपनी फसल को मंडी से ज्यादा, मंडी के बाहर बेच देते हैं। आपके सरकारी आंकड़े भी कुछ यही कहते हैं। क्या कभी किसानों से यह सवाल पूछा गया कि आप सरकारी मंडी में ना बेच कर, आप मंडी से बाहर क्यों बेच देते हैं, क्या बाहर बेचने पर आपको उचित मूल्य मिलता है, जो मूल्य सरकार तय की हुई है। अगर सवाल पूछे जाते हैं तो जवाब बस यही आता, कि नहीं उचित मूल्य नहीं मिला, लेकिन क्या करें मजबूरी में बेचना पड़ा। क्या सरकारी मंडी में बैठे उन सरकारी बाबुओं से यह सवाल पूछा गया की ,आखिर किसान क्यों सरकारी मंडी में आकर अपने फसल को मंडी से बाहर बेच रहे हैं।आप के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकारी मंडियों में खरीदारी तो कुछ बड़ी भी है,आपसे पहले तो और भी सरकारी मंडियों का बेड़ा गर्क था।ये सरकारी बाबू इतने परेशान करते थे की किसान सरकारी मंडी में ना बेच कर,उसे कम मूल्य में ही अपनी फसल को बाहर बेच देता था। माननीय प्रधानमंत्री जी आप हमारे देश के उन नेताओं में से हैं, जो गरीबी को बहुत करीबी से जानते हैं ,तो आप बहुत अच्छे से जानते होंगे कि यहां गरीबों को इंसाफ मिलना कितना कठिन होता है। यहां इंसाफ भी उसी का होता है जिसके पास पैसा होता है ,चाहे वह इंसान गलत ही क्यों ना हो। आप अपने उम्र के उस पड़ाव में है, जिस पड़ाव में आप बहुत भली भांति जान चुके हैं कि, हमारे देश के नौकरशाह पैसों वालों के जी हुजूरी करने में व्यस्त रहते हैं, तो हमारे देश के किसानों को ये नौकरशाह कैसे इंसाफ दिला पाएंगे। मैं आखरी में फिर से एक बार और मैं यह बताना चाहता हूं कि,हमारे देश के अधिकतर किसान सरकारी मंडी में ना बेचकर वो मंडी से बाहर बेचते हैं और उन्हें बाहर बेचने पर उचित मूल्य भी नहीं मिलता है फिर भी वो बाहर बेचते हैं, क्योंकि वो ये सब मजबूरी में करते हैं।

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