Thursday, October 28, 2021

अगर तुम्हें रूठना ही था

अगर तुम्हें रूठना ही था, तो बता देते, मनाने का हुनर मैं भी सीख लेता, बिना कुछ कहे ही छोड़ गए। कभी सोचा नहीं, जिंदगी तुमसे ही थी मेरी।

Saturday, October 16, 2021

वो नेता जो अपने आप को दलित समाज के मसीहा होने की बात करते हैं ,क्या वो सच में उनके उत्थान के बारे में सोचते हैं या सिर्फ उनका उत्थान उससे जुड़ा होता है?

जरा सोचिए, जो नेता दलित समाज के मसीहा अपने आप हो बताते हैं, क्या वो सच में उनका मसीहा है या सिर्फ दलित समाज के लोगों को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करते हैं। सबसे पहले अपने देश में ही हमारे दलित समाज के ऊपर हो रहे अन्याय पर, ये सारे दलित समाज के मसीहा बनने नेता कैसे खामोश रहते हैं, उसे देखते हैं। जम्मू कश्मीर आजाद भारत का वह राज्य जहां दलितों को सिर्फ सफाई करने के अलावा उनका कोई हक नहीं दिया गया था, ना वहां कि नागरिक बन सकते थे, ना ही वो वहां के सरकारी नौकरी कर सकते थे, यहां तक की उन्हें उच्च शिक्षा लेने का अधिकार भी नहीं था, फिर भी हमारे देश के दलितों के मसीहा मानने वाले नेता खामोश रहते थे। अब हम बात करते हैं पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जो हमारे दलित समाज के लोग रह गए थे उनके बारे में। देश के दो भाग करने के बाद पाकिस्तान ,बांग्लादेश मे जो हिंदू समाज वहां रह गए थे , उसमें से 90% से अधिक हमारे दलित समाज के लोग थे, जो आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वही रूक गए थे। अफगानिस्तान में भी कुछ यही स्थिति थी। और हम सब जानते हैं पाकिस्तान ,बांग्लादेश, अफगानिसतान में हिंदुओं के साथ क्या होता है। नारकीय जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं। हर दिन उन्हें मारा जाता है, उनके बहन-बेटियों को उठा ले जाया जाता है, उनके साथ दरिंदगी की जाती है, जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जाता है, उनके धार्मिक स्थलों को तोड़ा जाता है, बेरहमी से उनका हत्या किया जाता है। ऐसी घटनाएं वहां आम है, हिंदू समाज के लोगों के साथ। इन परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार ने #CAA कानून बनाकर, ऐसे समाज के लोगों को नागरिकता देने की पहल की थी ,लेकिन सारे दलित समाज के मसीहा बनने वाले नेता ,इस कानून के खिलाफ में आवाज बुलंद की क्यों। जवाब सिर्फ एक है वोट बैंक के कारण। मुझे नहीं लगता की तमाम ऐसे नेता, जो अपने आप को दलित समाज के मसीहा बनने की घोषणा करते हैं, वह वास्तव में दलित समाज के लिए रत्ती भर भी उनके सुरक्षा,उत्थान की सोच रखते हैं। वह सिर्फ अपने उत्थान की सोच रखते हैं, अपनी राजनीति कैसे चले उसकी सुरक्षा पर ध्यान रखते हैं। इसलिए ऐसे भ्रम जाल से बाहर निकलकर बृहद पैमाने पर सोचने की जरूरत है कि, क्या ऐसे लोग सच में दलित समाज के मसीहा है, या सिर्फ उन्हें वोट बैंक की तरह उपयोग किया जा रहा है। बाकी मैं आप पर छोड़ दे रहा हूं ,कि आप उनके बारे में क्या सोचते हैं, मेरा तो सिर्फ एक ही सोच है, ऐसे नेता सिर्फ और सिर्फ हमारे दलित समाज के लोगों को वोट बैंक की तरह उपयोग करते हैं।

Saturday, October 9, 2021

यादों में तो हो तुम।

तुम्हारी जब याद आती है, तो यह सोचकर दिल को सुकून मिलता है, मेरी जिंदगी में ना सही, यादों में तो हो तुम।

Wednesday, October 6, 2021

तेज रफ्तार वाली ट्रेनें वक्त की मांग ही नहीं जरूरत भी है

अगर शहरों पर बढ़ती जनसंख्या के बोझ को रोकना है, तो इस मुश्किल से बचने का एक ही उपाय है, तेज गति वाले ट्रेनों के जाल को जितना हो सके फैलाया जाए। आप सोच रहे होगें की शहरों में बढ़ती जनसंख्या और तेज गति से चलने वाले ट्रेनों का क्या संबंध है। जी हां दोनों के बीच में संबंध है और गहरा संबंध। हम इस तरह से समझते हैं की माना कोई व्यक्ति अपने घर से 250KM दूर काम पर जाता है शहर में। प्रतिदिन 250KM जाना और आना, यह बहुत बड़ी समस्या होती है, इस कारण वह व्यक्ति शहर में ही रहना पसंद करता है। और यह समस्या इसीलिए नहीं है कि उस व्यक्ति को 250KM जाना पड़ता है और आना पड़ता है, यह समस्या इस लिए है की ,इस दूरी को तय करने में प्रतिदिन उसे 8 से 9 घंटे लग जाएंगे , शायद इससे भी ज्यादा लग सकते हैं। अगर यही सफर वह व्यक्ति 1 घंटे जाने और 1 घंटे आने में लगाता है, तो वह व्यक्ति कभी भी शहर में नहीं रहेगा ,उस व्यक्ति का जहां पर घर रहेगा वही रहेगा, कौन अपने घर परिवार को छोड़कर शहर में रहना पसंद करता है। अगर शहरों में बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगानी है, तो हमें तेज गति वाले यातायात की व्यवस्था करनी होगी, नहीं तो गांव खाली होते जाएंगे शहर व्यस्त होते जाएंगे। तेज रफ्तार वाली ट्रेन वक्त की मांग ही नहीं, बल्कि जरूरत भी है। अगर इस तरह के यातायात का व्यवस्था होता है, तो शहरों में बढ़ते गाड़ियों की संख्या में भी तेजी से कमी आएगी।