Wednesday, December 9, 2020

अन्नदाता के लिए मोदी के मन में क्या?


आखिर क्यों माननीय प्रधानमंत्री जी ,जो किसानों के हित में बात करते हैं, वो आधे-अधूरे कृषि कानून लेकर हैं। क्या बड़े उद्योगपतियों के लिए ये बिल लाया गया था? मौजूदा परिस्थितियां तो यही कहती हैंकि, हां यह बिल बड़े उद्योगपतियों के लिए लाया गया था उनके फायदे के लिए। मैंने फिर मैंने मौजूदा हालात को गहराई से विश्लेषण किया ,तो यह पाया की ,अभी जो देश में किसान आंदोलन हो रहा है , उसमें विपक्षी पार्टियां पूरी तरह मिलकर ,पूरा किसान आंदोलन को ही अपना विरोध करने का हथियार बना लिया है ,जैसे ही भारत बंद का घोषणा किसानों द्वारा किया गया, इसमें सारे विपक्षी पार्टियां इसके साथ खड़े होकर, देश के कई हिस्सों में उग्र प्रदर्शन किए। सोचने की बात यह हैंकी, जो पार्टियां 70 साल तक देश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किए वो 70 साल में भी किसानों की स्थिति को सुधारने में सफल नहीं हुए थे। किसानों को बस वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किए हैं, आज वही पार्टियां किसान के हित में कैसे बोल रहे हैं?।ये पार्टियां सिर्फ और सिर्फ किसानों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किए हैं , वो अचानक इनके हमदर्द कैसे बन गए?। देशभर में भारत बंद के नाम पर हिंसा किया गया। मौजूदा कानून उद्योगपतियों के हित में है, पर कैसे? 1)अगर उद्योगपति सरकारी मंडी से बाहर MSP से कम कीमत पर भी फसल को खरीदते हैं, तो उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। 2) अगर फसल खरीद बिक्री में कोई दिक्कत आती है तो इसके समाधान के लिए ब्यूरोक्रेसी के(ट्रिब्यूनल कोर्ट ) माध्यम से विवाद का निपटारा किया जाएगा। सिविल कोर्ट के अधिकार से भी वंचित रखा गया है। और हमारे देश में एक आम आदमी भी जानता हैंकी, हमारे अफसर गरीबों की सुनते कहां है ,और जब लड़ाई सीधे तौर पर उद्योगपतियों से होगा ,तो ये अफसर किसके पक्ष लेंगे यह साफ दिखता है। यह तो हो गई मौजूदा कानून के बारे में, जो सिर्फ और सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के हक में है। और हमारे किसानों के लिए यह काला कानून है। अब बात करते हैं कानूनों में सुधार की, जिसे केंद्र सरकार ने माना हैंकी सुधार करेंगे। 1)मंडी से बाहर बेचना भी कानून के दायरे में आएंगा, अर्थात अब मंडी के बाहर भी कोई भी व्यापारी MSP से नीचे नहीं खरीद सकता। 2) अब सिविल कोर्ट में भी इन मामलों का निपटारा होगा। सुधार होने के बाद यह कानून किसानों के हित में तो होंगे ,पर जो व्यापारी हैं, उनके लिए यह काला कानून हो जाएगा ,जिसे सरकार बहुत अच्छे से जानती थी। कृषि कानून में सुधार होने के बाद सरकार ने व्यापारियों को भंडारण करने की जो सहूलियत दी है, वह अपने आप खत्म हो जाएगा। जानते हैं कैसे? व्यापारी अन भंडारण करेंगे ,ना कि सोना-चांदी, जो सालों साल रखने के बाद भी खराब नहीं होगा। हर 6 महीने पर नई फसल आ ही जाती है, अब व्यापारी अगर यह सोच कर अन का भंडारण करता हैंकि हम बाद में इसे उच्च कीमत पर बेचेंगे और नई फसल अगर आती है, तो हम किसानों के मजबूरी का फायदा उठाकर कम दाम पर भी खरीद सकते हैं। तो अब ऐसा होगा नहीं ,क्योंकि किसान मंडी के बाहर में भी अपनी फसल को MSP पर ही बेचेगा, अगर कोई व्यापारी MSP से कम दर पर खरीदा है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई होगी। MSP पर देश के फसल के कुल उत्पादन का 6% ही सरकारी मंडियों में बेची जाती थी ,बाकी के 94% फसल मंडी से बाहर बेचे जाते थे। बेचे जाने वाले 94% फसल का कोई माई-बाप नहीं था,की उसे MSP से ज्यादा में बेचा गया या कम में। लेकिन अगर हम किसानों से बात करके जानते हैं ,तो हमारे देश के किसान मजबूत किसान नहीं ,मजबूर और लाचार किसान है ,जिन्हें इस बात की फिक्र सताती हैंकि ,कहीं ये अन भंडारण करने के चक्कर में उनका फसल ही खराब ना हो जाए ,क्योंकि उनके पास भंडारण की कोई अच्छी सुविधा होती ही नहीं है। फसल उगाने के लिए भारी भरकम कर्ज भी उन्हें बहुत चल चुकाना होता है ,उस कारण भी किसान फसल होते ही, उस फसल को बेचकर मुक्त होना चाहता है और यही कारण हैंकि किसान सरकारी मंडी से ज्यादा ,मंडी के बाहर बेच देते थे ,वह भी MSP से कम दरों पर। पुराने मंडी व्यवस्था से सबसे ज्यादा व्यापारियों का फायदा होता था ,जो हमारे देश के मजबूर किसानों का फायदा उठाते थे ,कम दरों पर फसलों की खरीदी करते थे और उससे अधिक कीमत पर बेचते थे। अब सोचिए क्या होता जब सरकार शुरुआत में ही कृषि कानून में यह जोड़ देती की, मंडी के बाहर बेचे जाने वाले फसल भी कानून के दायरे में आएंगे । मंडी के बाहर 94% फसल खरीदने वाले व्यापारी के लिए यह एक काला कानून हो जाता। हमारे देश के गरीब किसान, जो आंदोलन के लिए पैसे नहीं दे सकते हैं, उनके लिए देश के सारे टुकड़े-टुकड़े गैंग,बुद्धिजीवी लोग देशभर में हंगामा खड़ा कर दिए है। जरा सोचिए क्या होता ,जब व्यापारियों से मलाई खाने वाले ये टुकड़े-टुकड़े गैंग, बुद्धिजीवी लोग व्यापारियों के साथ होते हैं। किसान भाइयों के द्वारा बुलाए गए भारत बंद का असर नाममात्र का हुआ, सोचिए जब ये व्यापारी लोग देशव्यापी आंदोलन करते हैं और ये सारे टुकड़े-टुकड़े गैंग ,बुद्धिजीवी लोग, एक साथ आंदोलन करते हैं,तो क्या होता ,पूरे देश को जला कर रख देते हैं ये लोग। क्योंकि व्यापारी लोग टुकड़े-टुकड़े गैंग और बुद्धिजीवियों को बहुत मात्रा में funding करते आंदोलन के लिए। पूरे देश की रफ्तार थम जाती। लेकिन अब जो कानून में सुधार होगा,वो व्यापारियों के लिए तो काला कानून होगा ,लेकिन किसानों के हित में होगा। लेकिन टुकड़े-टुकड़े गैंग और बुद्धिजीवियों के लिए आंदोलन करने के लिए कुछ भी नहीं होगा ,अगर वो आंदोलन करते हैं ,तो उनका दोहरा चरित्र पूरे देश को पता चल जाएगा।

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