Sunday, December 27, 2020
Friday, December 25, 2020
Dialogue
तेरा मुझसे मिलना होता तो नहीं है, पर जब तुम मिलते हो, मानो ऐसा लगता है, सदियों से मेरे साथ हो तुम।
Tuesday, December 22, 2020
दिल है गिरवी तेरे पास
दिल है गिरवी तेरे पास, भेद क्या छुपाऊं।
आंखों से कहता तो हर रोज हूं, पर तेरी आंखें शक से देखती है मुझे।
लब्ज कुछ और कह जाते हैं
मीठी रोशनी ही आंखों को पसंद है, तीखी रोशनी में आंखें तो बंद हो जाती है।
मैंने आंखों को सुनकर देखा है ,वक्त आने पर आंखें तो झुक जाती है ,पर होठों के लब्ज कुछ और कह जाते हैं।
Sunday, December 20, 2020
Saturday, December 19, 2020
खुद को भूल गया हूं
सच कहूं तो अब तुम्हारी याद नहीं आती, बस आंखें भर आती है। फिर सोचता हूं क्यों, फिर याद आता है, खुद को जो भूल गया हूं।
किसने तुम्हें हैं रोका ।
बहना ही है तुम्हें, तो बहो,किसने तुम्हें रोका है। समंदर में मिलना ही है तुम्हें, तो मिलो, किसने तुम्हें रोका हैं।
पर याद रखना ,लौटना तुम्हारे बस में ना होगा।
Tuesday, December 15, 2020
Wednesday, December 9, 2020
अन्नदाता के लिए मोदी के मन में क्या?
आखिर क्यों माननीय प्रधानमंत्री जी ,जो किसानों के हित में बात करते हैं, वो आधे-अधूरे कृषि कानून लेकर हैं। क्या बड़े उद्योगपतियों के लिए ये बिल लाया गया था? मौजूदा परिस्थितियां तो यही कहती हैंकि, हां यह बिल बड़े उद्योगपतियों के लिए लाया गया था उनके फायदे के लिए। मैंने फिर मैंने मौजूदा हालात को गहराई से विश्लेषण किया ,तो यह पाया की ,अभी जो देश में किसान आंदोलन हो रहा है , उसमें विपक्षी पार्टियां पूरी तरह मिलकर ,पूरा किसान आंदोलन को ही अपना विरोध करने का हथियार बना लिया है ,जैसे ही भारत बंद का घोषणा किसानों द्वारा किया गया, इसमें सारे विपक्षी पार्टियां इसके साथ खड़े होकर, देश के कई हिस्सों में उग्र प्रदर्शन किए। सोचने की बात यह हैंकी, जो पार्टियां 70 साल तक देश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किए वो 70 साल में भी किसानों की स्थिति को सुधारने में सफल नहीं हुए थे। किसानों को बस वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किए हैं, आज वही पार्टियां किसान के हित में कैसे बोल रहे हैं?।ये पार्टियां सिर्फ और सिर्फ किसानों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किए हैं , वो अचानक इनके हमदर्द कैसे बन गए?। देशभर में भारत बंद के नाम पर हिंसा किया गया। मौजूदा कानून उद्योगपतियों के हित में है, पर कैसे? 1)अगर उद्योगपति सरकारी मंडी से बाहर MSP से कम कीमत पर भी फसल को खरीदते हैं, तो उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। 2) अगर फसल खरीद बिक्री में कोई दिक्कत आती है तो इसके समाधान के लिए ब्यूरोक्रेसी के(ट्रिब्यूनल कोर्ट ) माध्यम से विवाद का निपटारा किया जाएगा। सिविल कोर्ट के अधिकार से भी वंचित रखा गया है। और हमारे देश में एक आम आदमी भी जानता हैंकी, हमारे अफसर गरीबों की सुनते कहां है ,और जब लड़ाई सीधे तौर पर उद्योगपतियों से होगा ,तो ये अफसर किसके पक्ष लेंगे यह साफ दिखता है। यह तो हो गई मौजूदा कानून के बारे में, जो सिर्फ और सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के हक में है। और हमारे किसानों के लिए यह काला कानून है। अब बात करते हैं कानूनों में सुधार की, जिसे केंद्र सरकार ने माना हैंकी सुधार करेंगे। 1)मंडी से बाहर बेचना भी कानून के दायरे में आएंगा, अर्थात अब मंडी के बाहर भी कोई भी व्यापारी MSP से नीचे नहीं खरीद सकता। 2) अब सिविल कोर्ट में भी इन मामलों का निपटारा होगा। सुधार होने के बाद यह कानून किसानों के हित में तो होंगे ,पर जो व्यापारी हैं, उनके लिए यह काला कानून हो जाएगा ,जिसे सरकार बहुत अच्छे से जानती थी। कृषि कानून में सुधार होने के बाद सरकार ने व्यापारियों को भंडारण करने की जो सहूलियत दी है, वह अपने आप खत्म हो जाएगा। जानते हैं कैसे? व्यापारी अन भंडारण करेंगे ,ना कि सोना-चांदी, जो सालों साल रखने के बाद भी खराब नहीं होगा। हर 6 महीने पर नई फसल आ ही जाती है, अब व्यापारी अगर यह सोच कर अन का भंडारण करता हैंकि हम बाद में इसे उच्च कीमत पर बेचेंगे और नई फसल अगर आती है, तो हम किसानों के मजबूरी का फायदा उठाकर कम दाम पर भी खरीद सकते हैं। तो अब ऐसा होगा नहीं ,क्योंकि किसान मंडी के बाहर में भी अपनी फसल को MSP पर ही बेचेगा, अगर कोई व्यापारी MSP से कम दर पर खरीदा है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई होगी। MSP पर देश के फसल के कुल उत्पादन का 6% ही सरकारी मंडियों में बेची जाती थी ,बाकी के 94% फसल मंडी से बाहर बेचे जाते थे। बेचे जाने वाले 94% फसल का कोई माई-बाप नहीं था,की उसे MSP से ज्यादा में बेचा गया या कम में। लेकिन अगर हम किसानों से बात करके जानते हैं ,तो हमारे देश के किसान मजबूत किसान नहीं ,मजबूर और लाचार किसान है ,जिन्हें इस बात की फिक्र सताती हैंकि ,कहीं ये अन भंडारण करने के चक्कर में उनका फसल ही खराब ना हो जाए ,क्योंकि उनके पास भंडारण की कोई अच्छी सुविधा होती ही नहीं है। फसल उगाने के लिए भारी भरकम कर्ज भी उन्हें बहुत चल चुकाना होता है ,उस कारण भी किसान फसल होते ही, उस फसल को बेचकर मुक्त होना चाहता है और यही कारण हैंकि किसान सरकारी मंडी से ज्यादा ,मंडी के बाहर बेच देते थे ,वह भी MSP से कम दरों पर। पुराने मंडी व्यवस्था से सबसे ज्यादा व्यापारियों का फायदा होता था ,जो हमारे देश के मजबूर किसानों का फायदा उठाते थे ,कम दरों पर फसलों की खरीदी करते थे और उससे अधिक कीमत पर बेचते थे। अब सोचिए क्या होता जब सरकार शुरुआत में ही कृषि कानून में यह जोड़ देती की, मंडी के बाहर बेचे जाने वाले फसल भी कानून के दायरे में आएंगे । मंडी के बाहर 94% फसल खरीदने वाले व्यापारी के लिए यह एक काला कानून हो जाता। हमारे देश के गरीब किसान, जो आंदोलन के लिए पैसे नहीं दे सकते हैं, उनके लिए देश के सारे टुकड़े-टुकड़े गैंग,बुद्धिजीवी लोग देशभर में हंगामा खड़ा कर दिए है। जरा सोचिए क्या होता ,जब व्यापारियों से मलाई खाने वाले ये टुकड़े-टुकड़े गैंग, बुद्धिजीवी लोग व्यापारियों के साथ होते हैं। किसान भाइयों के द्वारा बुलाए गए भारत बंद का असर नाममात्र का हुआ, सोचिए जब ये व्यापारी लोग देशव्यापी आंदोलन करते हैं और ये सारे टुकड़े-टुकड़े गैंग ,बुद्धिजीवी लोग, एक साथ आंदोलन करते हैं,तो क्या होता ,पूरे देश को जला कर रख देते हैं ये लोग। क्योंकि व्यापारी लोग टुकड़े-टुकड़े गैंग और बुद्धिजीवियों को बहुत मात्रा में funding करते आंदोलन के लिए। पूरे देश की रफ्तार थम जाती। लेकिन अब जो कानून में सुधार होगा,वो व्यापारियों के लिए तो काला कानून होगा ,लेकिन किसानों के हित में होगा। लेकिन टुकड़े-टुकड़े गैंग और बुद्धिजीवियों के लिए आंदोलन करने के लिए कुछ भी नहीं होगा ,अगर वो आंदोलन करते हैं ,तो उनका दोहरा चरित्र पूरे देश को पता चल जाएगा।
Sunday, December 6, 2020
शोर को कैसे छुपाओगे
चेहरे पर चेहरे जितनी भी तुम लगा लो, आईना तुम्हें बताएगी, तुम बदल गए हो। पर उस आईना से, तुम खुद को कब-तक छुपाओगे,जो तेरे दिल में है। लहरों के शोर में,तुम खुद को छुपा लेना, खामोशियां भी तो आएगी, फिर दिल के शोर को कैसे छुपाओगे।
Thursday, December 3, 2020
My Humble Request to My Respected Prime Minister
माननीय प्रधानमंत्री जी आपका कृषि कानून 2020 ठीक तो है, पर हमारे देश के लिए नहीं, बल्कि विदेशी किसानों के लिए जो मजबूत किसान है। हमारे देश के किसान मजबूत नहीं मजबूर हैं, खेत से फसल काटते ही उन्हें इस बात की फिक्र होती है कि कैसे इसे बेचकर हटाए, अगर इसे बेचकर नहीं हटाएंगे तो इसका भंडारण हम कहां करेंगे, अगर भंडारण नहीं करेंगे,यह अनाज बहुत जल्द खराब हो जाएंगे। इस कारण हमारे देश के किसान मजबूरी में अपनी फसल को जितना जल्दी हो सके बेचकर हटाना चाहता है। क्योंकि उनके पास ना ही अच्छा भंडारण की सुविधा है और जल्द से जल्द फसल बेचकर कर्ज भी लौटाने होते हैं। इसलिए हमारे देश के किसान मजबूरी में अपनी फसल को मंडी से ज्यादा, मंडी के बाहर बेच देते हैं। आपके सरकारी आंकड़े भी कुछ यही कहते हैं। क्या कभी किसानों से यह सवाल पूछा गया कि आप सरकारी मंडी में ना बेच कर, आप मंडी से बाहर क्यों बेच देते हैं, क्या बाहर बेचने पर आपको उचित मूल्य मिलता है, जो मूल्य सरकार तय की हुई है। अगर सवाल पूछे जाते हैं तो जवाब बस यही आता, कि नहीं उचित मूल्य नहीं मिला, लेकिन क्या करें मजबूरी में बेचना पड़ा। क्या सरकारी मंडी में बैठे उन सरकारी बाबुओं से यह सवाल पूछा गया की ,आखिर किसान क्यों सरकारी मंडी में आकर अपने फसल को मंडी से बाहर बेच रहे हैं।आप के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकारी मंडियों में खरीदारी तो कुछ बड़ी भी है,आपसे पहले तो और भी सरकारी मंडियों का बेड़ा गर्क था।ये सरकारी बाबू इतने परेशान करते थे की किसान सरकारी मंडी में ना बेच कर,उसे कम मूल्य में ही अपनी फसल को बाहर बेच देता था।
माननीय प्रधानमंत्री जी आप हमारे देश के उन नेताओं में से हैं, जो गरीबी को बहुत करीबी से जानते हैं ,तो आप बहुत अच्छे से जानते होंगे कि यहां गरीबों को इंसाफ मिलना कितना कठिन होता है। यहां इंसाफ भी उसी का होता है जिसके पास पैसा होता है ,चाहे वह इंसान गलत ही क्यों ना हो। आप अपने उम्र के उस पड़ाव में है, जिस पड़ाव में आप बहुत भली भांति जान चुके हैं कि, हमारे देश के नौकरशाह पैसों वालों के जी हुजूरी करने में व्यस्त रहते हैं, तो हमारे देश के किसानों को ये नौकरशाह कैसे इंसाफ दिला पाएंगे।
मैं आखरी में फिर से एक बार और मैं यह बताना चाहता हूं कि,हमारे देश के अधिकतर किसान सरकारी मंडी में ना बेचकर वो मंडी से बाहर बेचते हैं और उन्हें बाहर बेचने पर उचित मूल्य भी नहीं मिलता है फिर भी वो बाहर बेचते हैं, क्योंकि वो ये सब मजबूरी में करते हैं।
Tuesday, December 1, 2020
इंतजार
चांद छुपा है तो क्या हुआ, हम कुछ और वक्त इंतजार कर लेंगे।
माना कुछ अंधेरी रात होंगी, पर चांदनी रात भी जरूर होगा।
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