Friday, January 3, 2020

मेरे एहसास

मस्तियों में डुबती थी नादानियां, वो वक्त कहीं से लाओ। नादान हम तो अब भी है, पर अब शर्म कहां छुपाऊं, दिल करता है तोड़ दूं दर्पण, पर दुनिया को क्या दिखाऊं, यही सोच कर एक चेहरे पर दूसरा चेहरा मैं खुद से ही लगाऊं।

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