Saturday, October 16, 2021

वो नेता जो अपने आप को दलित समाज के मसीहा होने की बात करते हैं ,क्या वो सच में उनके उत्थान के बारे में सोचते हैं या सिर्फ उनका उत्थान उससे जुड़ा होता है?

जरा सोचिए, जो नेता दलित समाज के मसीहा अपने आप हो बताते हैं, क्या वो सच में उनका मसीहा है या सिर्फ दलित समाज के लोगों को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करते हैं। सबसे पहले अपने देश में ही हमारे दलित समाज के ऊपर हो रहे अन्याय पर, ये सारे दलित समाज के मसीहा बनने नेता कैसे खामोश रहते हैं, उसे देखते हैं। जम्मू कश्मीर आजाद भारत का वह राज्य जहां दलितों को सिर्फ सफाई करने के अलावा उनका कोई हक नहीं दिया गया था, ना वहां कि नागरिक बन सकते थे, ना ही वो वहां के सरकारी नौकरी कर सकते थे, यहां तक की उन्हें उच्च शिक्षा लेने का अधिकार भी नहीं था, फिर भी हमारे देश के दलितों के मसीहा मानने वाले नेता खामोश रहते थे। अब हम बात करते हैं पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जो हमारे दलित समाज के लोग रह गए थे उनके बारे में। देश के दो भाग करने के बाद पाकिस्तान ,बांग्लादेश मे जो हिंदू समाज वहां रह गए थे , उसमें से 90% से अधिक हमारे दलित समाज के लोग थे, जो आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वही रूक गए थे। अफगानिस्तान में भी कुछ यही स्थिति थी। और हम सब जानते हैं पाकिस्तान ,बांग्लादेश, अफगानिसतान में हिंदुओं के साथ क्या होता है। नारकीय जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं। हर दिन उन्हें मारा जाता है, उनके बहन-बेटियों को उठा ले जाया जाता है, उनके साथ दरिंदगी की जाती है, जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जाता है, उनके धार्मिक स्थलों को तोड़ा जाता है, बेरहमी से उनका हत्या किया जाता है। ऐसी घटनाएं वहां आम है, हिंदू समाज के लोगों के साथ। इन परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार ने #CAA कानून बनाकर, ऐसे समाज के लोगों को नागरिकता देने की पहल की थी ,लेकिन सारे दलित समाज के मसीहा बनने वाले नेता ,इस कानून के खिलाफ में आवाज बुलंद की क्यों। जवाब सिर्फ एक है वोट बैंक के कारण। मुझे नहीं लगता की तमाम ऐसे नेता, जो अपने आप को दलित समाज के मसीहा बनने की घोषणा करते हैं, वह वास्तव में दलित समाज के लिए रत्ती भर भी उनके सुरक्षा,उत्थान की सोच रखते हैं। वह सिर्फ अपने उत्थान की सोच रखते हैं, अपनी राजनीति कैसे चले उसकी सुरक्षा पर ध्यान रखते हैं। इसलिए ऐसे भ्रम जाल से बाहर निकलकर बृहद पैमाने पर सोचने की जरूरत है कि, क्या ऐसे लोग सच में दलित समाज के मसीहा है, या सिर्फ उन्हें वोट बैंक की तरह उपयोग किया जा रहा है। बाकी मैं आप पर छोड़ दे रहा हूं ,कि आप उनके बारे में क्या सोचते हैं, मेरा तो सिर्फ एक ही सोच है, ऐसे नेता सिर्फ और सिर्फ हमारे दलित समाज के लोगों को वोट बैंक की तरह उपयोग करते हैं।

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