Saturday, December 4, 2021
The Philosophy of Nonviolence
अहिंसा सिर्फ आपको महान बना सकता है, आपको आपका अधिकार नहीं दिला सकता।
लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं हैंकी, आपके अधिकार को दिलाने में अहिंसा का कोई महत्व नहीं है।
अहिंसा आपके सफलता का वह पहली सीढ़ी है,जो आगे पहुंचाने का रास्ता दिखाती है।
अहिंसा आपको विषम से विषम परिस्थितियों को सहन करने लायक बनाती है।
लोहे को गर्म कर, उसे बार-बार पीटने पर, उसके द्वारा जो शस्त्र बनता है, वह काफी कठोर होता है।
अगर कोई शस्त्र बनाने में यह प्रक्रिया पालन नहीं किया जाता है, तो वह शस्त्र युद्ध में पहले ही वार झेल नहीं पाता है और टूट जाता है।
अगर आपको अपने लक्ष्य को पाना है, तो सबसे पहले आपको उस लक्ष्य के जरूरतों के अनुसार आपको अपने आप को बनाना पड़ेगा।
अगर मैं जब अहिंसा की बात करता हूं तो वहां हिंसा स्वयं आ जाती है।
और जब बात हिंसा की आती है ,तो वहां हिंसा को समाप्त करना ही एकमात्र उद्देश्य होता है।
और अगर आप हिंसा को समाप्त करना चाहते हैं ,तो हिंसा सहन करने की क्षमता भी आपके अंदर होनी चाहिए।
मिट्टी के बर्तन में अगर पानी रखनी है, तो पहले मिट्टी के बर्तन को आग में तपाना ही पड़ता है।
अगर आपको हिंसा के खिलाफ लड़ना है, तो पहले आपको हिंसा सहने की क्षमता होनी ही चाहिए।
अहिंसा वो अग्नि रूपी ताप है,जो आपको हिंसा सहने की क्षमता प्रदान करती है और आपको हिंसा के खिलाफ लड़ने के लायक बनाती है।
अहिंसा आपको कायर नहीं बनाती, बल्कि अहिंसा आपको आपके उद्देश्य के लायक बनाती है।
जल को वाष्प बनने से तब तक रोक सकते हैं ,जब तक उसमें को ऊर्जा नहीं आ जाती, जिस उर्जा में वह वाष्प में बदल जाता है। जल जैसे ही वह उर्जा को प्राप्त कर लेता है, जिस ऊर्जा पर वह वाष्प बन जाता है, फिर उसे वाष्प बनने से कोई नहीं रोक सकता, खुद जल भी नहीं।
अगर आप अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं, तो आप तब तक ही अहिंसक हैं ,जब तक आपके अंदर हिंसा सहने की क्षमता ना हो जाए ,जैसे ही आप में हिंसा सहने की क्षमता आ जाएगी,तो आप से बड़ा हिंसक कोई नहीं हो सकता।
फिर आपको कोई नहीं रोक सकता, आपको आपके लक्ष्य को पाने से ,आप स्वयं को भी नहीं रोक सकते।
अहिंसा बहुआयामी मार्ग है।
परंतु अहिंसा की सारे मार्ग का उद्देश्य एक ही है, विजय प्राप्त करना ,अब यह आप पर निर्भर करता है कि ,आप अहिंसा के किस मार्ग से विजय प्राप्त करना चाहते हैं।
अहिंसा परमो धर्मः अर्थात अहिंसा ही परम धर्म है।
शायद अहिंसा को परम धर्म इसीलिए कहा गया है की ,अहिंसा ही वह मार्ग है ,जो आपको ,आपके लक्ष्य तक पहुंचने में जो कठिनाइयां होती है ,उन कठिनाइयों से लड़ने मे ,आपको उस लायक बनाती है।
अहिंसा मतलब धैर्य, और धैर्य ही व्यक्ति को विद्वान ,महान योद्धा , महान दार्शनिक बनाता हैं।
एक योद्धा, अगर युद्ध में ,युद्ध के लिए जाता है , तो वह योद्धा बहुत अच्छी तरह से जानता है की, युद्ध में उसे चोट मिलेगी, शायद वह मारा भी जाएगा और शायद वह जीत भी जाए । यह सब जानते हुए भी वह सिर्फ जीत की उद्देश्य से युद्ध में जाता है।
जब वह इस युद्ध में जाता है, तो चोट का दर्द, मरने का भय और हारने का डर छोड़कर जाता है।
अगर वह इस युद्ध में जा रहा है ,तो उसे हिंसक ही होना पड़ेगा, तभी वह जीतेगा।
लेकिन क्या वह उस समय भी हिंसक बनकर ही युद्ध कला सीखा था। युद्ध कला सीखते समय भी उसे चोट का दर्द, मृत्यु का भय और हारने का डर था। पर उस समय वह हिंसक नहीं, अहिंसक बनकर युद्ध कला सीखा था।
युद्ध कला सीखते समय उसे कई बार चोट का दर्द मिला, वह कई बार हारा ,उसे कई बार यह एहसास हुआ कि वह आज मर ही जाता, फिर भी वो अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, युद्ध कला सिखा, जो से आगे चलकर महान योद्धा बनाएगा।
आप चाहे किसी क्षेत्र में अपना उद्देश्य रखते हैं, तो इसके लिए अहिंसा के मार्ग पर चलना ही पड़ेगा अर्थात आपको धैर्य रखना ही पड़ेगा।
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