ना जाने क्यों वक्त छूट सा गया है,
होठों की मुस्कान भी अब,रूठ सा गया है।
टूटा तो अंदर कुछ भी नहीं, पर ना जाने क्यों,दिल रुठ सा गया ।
शायद यह हकीकत ही है कि,अब वक्त छुट सा गया है ।
अब जगा करती रातों, मेरी आंखें
,शायद मालूम है,इन आंखों को,की ये रिश्ता टूट सा गया है।
पूरी उम्र पड़ी है यार दिल भी मान जाएगा सब कुछ लौट आएगा,ये भी वक्त बीत जाएगा
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