कुछ पल ,थम सी जाती है हवाएं और ये नदियां, शाम ही सही ,पर रुकना इंहें आता नहीं ।
संभलती हुई चलती है ये जिंदगी, कभी रुकती तो कभी थक जाती,पर ना पसंद थी इसे कोई बंदिशों बेडीयाँ ।
संभलती हुई चलती है ये जिंदगी, कभी रुकती तो कभी थक जाती,पर ना पसंद थी इसे कोई बंदिशों बेडीयाँ ।
No comments:
Post a Comment