ह्में सक हैं !
यह बात सोच कर बहुत इतराया करते है हम , यह बात कह कर गर्व से फुलों समाया करते है हम कि हम महान आत्माओं के वंसज है,यह कह कर गर्व से इतराया घुमा करते है हम !चलों इतराना भी अच्छी बात है,हम महान पुर्वजों के महान वंशज है,क्यों ना इतराए ! चलों जिन पुर्वजों के कारण हम इतना इतरा रहे है,उनके अमॄत वणी को याद कर लें!
विवेक नन्द :-कहा करते थे,उँच्चे. स्थन पर खडे. होकर और हाथों में कूछ पैसा लेकर यह ना कहों -ऐ भिखारी आओं यह ले लो,परन्तु इस बात के लिए उस गरीब का उपकार मानों की उसनें तुम्हे इस संसार में तुम्हारी उदारता और दया प्रकट करने का अवसर दिया ! उस गरिब का सौभाग्य नही कि उसे कुछ मिला ,सौभाग्य तो तुम्हारी हैंकि तुम्हारी दया प्रकट करने का उसने अवसर दिया !
पैगंबर मुहम्मद:-कहते हैंकि"इंनसान की असली दौलत तो वो अच्छे काम हैं, जो उसने दुनिया के लिए किए हैं" !
बुद्ध सिखाते हैंकि ,"सबसे बडी उपलब्धि तो दूसरो को देना ही हैं" !
तो बापू कहा करते थेंकि,उधोगपतियों को यह मानना चाहिए कि उनके पास जो धन-संपत्ति है,वे दरससल उसके ट्र्स्टी है और इसक इस्तेमाल उन्हे अपने फयदे के लिए नही ,जन-कल्यन के लिए करना चाहिए !
चलों बहुत चर्चा कर लिय,जिनके करण हम इतराया फिरा करते है हम ! लेकिन हमें सक हैंकि जिनके करण हम इतराया फिरा करते है, हम उनके वंशज है! सक है हमें,क्योंकि Science यह कहती हैकि हम पुर्वजों से ज्यादा सोच सकते है,ज्यादा कर सकते है,बौध्दिक शक्ति से ज्यादा हमारी बौध्दिक शक्ति है और हमारे आने वाले पीढ़ि और अधिक ज्ञानि होगा !
लेकिन यह भी एक अजीब पहेली हैंकि एक तरफ तो मानव सेवा प्राचिन काल से हमारी सभ्यता का एक अहम मूल्य रहा है,चहे सभी ग्रंथों,संतों, और गुरुओं के कहे वाणी ही क्यों ना हो! वाणी ही नही बल्कि वे करते भी थे!
सस्कृत की एक युक्ति है,"किसी मनुष्य का जीवन तभी महत्वपूर्ण है जब वह अपनी आमदनी से ज्यादा से ज्यादा लोगों का भरण-पोषण और कल्याण करे और अगर वह दुसरों के कल्याण के लिए ऐसा नही करता हैंतो वह जिंदा होते हुवे भी मॄत के समान है! लेकिन हमारे देश में यह एक अजीब पहेली कि तरह है!पुरे विश्व के धनी व्यक्तियों की सूची निकाली जाती है तो सबसे अधिक व्यक्ति क नाम हमारे देश से ही होता है,फिर भी हमारे देश में 38-40% लोग गरिबी रेखा से निचे निवास करते है!रही बात जन कल्याण की तो हमारे देश में 10% जन कल्याण के द्वारा लोगो को राहत पहुचाया जाता है तो वहि अमेरीक में 70-75% !तो अगर मैं यह कहता हूँ कि हमें सक हैंकि हम महान पूर्वजो के वंशज है तो मैं क्या गलत कहता हूँ!
मंदिर, मंस्जिद ------ पर हम पैसा फेंक सकते है लेकिन एक अनाथ बच्चें, गरीब लोगों का सेवा नही कर सकते है! एक कुत्ता का मालीक,घर हो सकता है,लेकिन एक अनाथ बच्चें का नही, क्यो? तो क्या हमें यह गर्व हमे अपने आप में लज्जा नही महसूस करवा रहा है ?
अगर नही तो हमें उनसे ज्यादा सूरवीर ,दानी और ज्ञाणी होना होगा !
यह बात सोच कर बहुत इतराया करते है हम , यह बात कह कर गर्व से फुलों समाया करते है हम कि हम महान आत्माओं के वंसज है,यह कह कर गर्व से इतराया घुमा करते है हम !चलों इतराना भी अच्छी बात है,हम महान पुर्वजों के महान वंशज है,क्यों ना इतराए ! चलों जिन पुर्वजों के कारण हम इतना इतरा रहे है,उनके अमॄत वणी को याद कर लें!
विवेक नन्द :-कहा करते थे,उँच्चे. स्थन पर खडे. होकर और हाथों में कूछ पैसा लेकर यह ना कहों -ऐ भिखारी आओं यह ले लो,परन्तु इस बात के लिए उस गरीब का उपकार मानों की उसनें तुम्हे इस संसार में तुम्हारी उदारता और दया प्रकट करने का अवसर दिया ! उस गरिब का सौभाग्य नही कि उसे कुछ मिला ,सौभाग्य तो तुम्हारी हैंकि तुम्हारी दया प्रकट करने का उसने अवसर दिया !
पैगंबर मुहम्मद:-कहते हैंकि"इंनसान की असली दौलत तो वो अच्छे काम हैं, जो उसने दुनिया के लिए किए हैं" !
बुद्ध सिखाते हैंकि ,"सबसे बडी उपलब्धि तो दूसरो को देना ही हैं" !
तो बापू कहा करते थेंकि,उधोगपतियों को यह मानना चाहिए कि उनके पास जो धन-संपत्ति है,वे दरससल उसके ट्र्स्टी है और इसक इस्तेमाल उन्हे अपने फयदे के लिए नही ,जन-कल्यन के लिए करना चाहिए !
चलों बहुत चर्चा कर लिय,जिनके करण हम इतराया फिरा करते है हम ! लेकिन हमें सक हैंकि जिनके करण हम इतराया फिरा करते है, हम उनके वंशज है! सक है हमें,क्योंकि Science यह कहती हैकि हम पुर्वजों से ज्यादा सोच सकते है,ज्यादा कर सकते है,बौध्दिक शक्ति से ज्यादा हमारी बौध्दिक शक्ति है और हमारे आने वाले पीढ़ि और अधिक ज्ञानि होगा !
लेकिन यह भी एक अजीब पहेली हैंकि एक तरफ तो मानव सेवा प्राचिन काल से हमारी सभ्यता का एक अहम मूल्य रहा है,चहे सभी ग्रंथों,संतों, और गुरुओं के कहे वाणी ही क्यों ना हो! वाणी ही नही बल्कि वे करते भी थे!
सस्कृत की एक युक्ति है,"किसी मनुष्य का जीवन तभी महत्वपूर्ण है जब वह अपनी आमदनी से ज्यादा से ज्यादा लोगों का भरण-पोषण और कल्याण करे और अगर वह दुसरों के कल्याण के लिए ऐसा नही करता हैंतो वह जिंदा होते हुवे भी मॄत के समान है! लेकिन हमारे देश में यह एक अजीब पहेली कि तरह है!पुरे विश्व के धनी व्यक्तियों की सूची निकाली जाती है तो सबसे अधिक व्यक्ति क नाम हमारे देश से ही होता है,फिर भी हमारे देश में 38-40% लोग गरिबी रेखा से निचे निवास करते है!रही बात जन कल्याण की तो हमारे देश में 10% जन कल्याण के द्वारा लोगो को राहत पहुचाया जाता है तो वहि अमेरीक में 70-75% !तो अगर मैं यह कहता हूँ कि हमें सक हैंकि हम महान पूर्वजो के वंशज है तो मैं क्या गलत कहता हूँ!
मंदिर, मंस्जिद ------ पर हम पैसा फेंक सकते है लेकिन एक अनाथ बच्चें, गरीब लोगों का सेवा नही कर सकते है! एक कुत्ता का मालीक,घर हो सकता है,लेकिन एक अनाथ बच्चें का नही, क्यो? तो क्या हमें यह गर्व हमे अपने आप में लज्जा नही महसूस करवा रहा है ?
अगर नही तो हमें उनसे ज्यादा सूरवीर ,दानी और ज्ञाणी होना होगा !