Tuesday, July 24, 2018

मेरे एहसास

चल दिया फिर से मैं,बहती इन हवाओं में,ना जाने क्या रूख़ होगा इसका। मंजिल तो थी नहीं,पर रास्ता साफ था, रुकता तो संभल जाता,पर पैरों को कहां मंजूर था।

No comments:

Post a Comment