Saturday, November 12, 2016

ख्वाहिशें बहुत की मगर

ख्वाहिशें बहुत थी , मगर ख्वाहिशों की कोई ख्वाब नहीं थी ।
आंखे करती भी, तो क्या करती, जब उसे कोई रास ना आया।
निकला जब ख्वाबों को ढूंढे , रात थी  काली मगर , नींदों ने साथ न दिया।

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